ना जाने क्यूँ आज मेरे माँ की याद दिला रही हैं,
आखें बंद कर के देखना चाह रहा हूँ एक चेहरा,
बस माँ ही मेरी उसमें दिख जा रही हैं|
लौट आया है जैसे बचपन आज मेरा,
ज़िन्दगी में मेरे दिख रहा है एक नया सवेरा,
खट्टी-मीठी उन सुनहरी यादों में माँ मेरी दिख जा रही हैं,
ख़्वाबों में मेरे वो बूंदें बन गिर जा रही हैं|
घनघोर बारिश की वो रात थी,
बादलों का शोर दिल में कर रहा था अंधियारा,
डर से काँप रहा था मैं,
हिल रहा था बदन मेरा सारा|
रात भर सोयी नहीं थी माँ,
बस जब मैंने डर से उनके आँचल में मुँह छुपा लिया था,
सुकून जो मिला था मुझे उस दिन,
फिर उसकी तलाश में भटकता रहा जीवन सारा|
आज जीवन की उलझनें दूर ले आई है मुझे तुमसे,
फिर भी हर पल दुआ निकलती है तुम्हारे लिए उस रब से,
आज फिर परेशानियों के भंवर में हूँ फँसा,
तो याद आई है तुम्हारी पहले सबसे|
ना जाने क्यूँ आज मैं फिर उस पल को जीना चाहता हूँ,
आँचल में तेरे सुकून के दो पल बिताना चाहता हूँ,
पर तुम्हारे आशीर्वाद में उठे हाथ को आज भी महसूस करता
हूँ|
आज जो कुछ भी हूँ माँ मैं, सब तेरी वजह से है,
साँस ले रहा हूँ मई, तो वो तेरी वजह से है,
दुआ करता हूँ उस ऊपर वाले से,की जो ज़िन्दगी मेरी आज तेरे
संगहै,
खुशनसीब होऊंगा मैं अगर कल भी तेरा-मेरा संग है|
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