एक ही प्रहार से।
चाहता हूँ सीखा दूँ इंसानियत,
उन्हें अपने हथियार से।
बहुत हो गई ‘अहिंसा परमोधर्म’
भरोषा भी कर लिया बहुत ही।
लात के ही भूत जो ठहरे,
सुनेंगे वो कैसे प्यार से?
आज वक़्त वो आ गया है,
काल विपत्ति का उनपर छा गया है।
चलो हक़ अपना हम ले लें आज,
और छीनलें उनसे अधिकार से।
ना जात, ना कोई पात,
ना धर्म से जुडी कोई बेफिजूल बात,
आज हम लड़ेंगे अनोखी लड़ाई,
समता का व्यव्हार से।
~Satwik Mishra
good one yaar.....
ReplyDeleteThanks Vishu
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