“दुनिया खिडकियों से”

Duniya Khidkiyon Se ~Ayush Jain

खिडकियों से झांकते हुए,
जो नज़र आता है,
असल है या है फ़साना,
सोचते हुए यह मन,
बहुत चकराता है |
 अब एक अरसे से
हम जो देखते आये हैं
क्या यह वही है,
जो यह मन समझ पता है?
या फिर ,
है एक अलग ही दुनिया ,
जहां है नहीं किसी को ,
किसी से कोई भी सरोकार |
पर हासिल करने में लगे हैं,
   सभी कुछ ऐसा ,
जिसका इल्म भी उन्हें
हो नहीं पाता है ?
इक दूजे की मदद,
कर सके अगर,
तो फंसे रह सकते हैं,
वे यहाँ जिंदगी भर |
पर कौन है,
जो उन्हें समझाए,
उन्हें समझ भी तो नहीं आता है |
हम तो बस,
दर्शक हैं,
जो खिडकियों से,
झांकते हैं !
या फिर शायद,
अंश हैं हम,
ऐसी ही किसी दुनिया का,
जहां कोई और शख्स,
किसी और खिड़की से,
झांकता है,
और ऐसा ही कुछ ख़याल
उसके मन में भी आता है !!




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