दिल को बोला संभल जा ज़रा
दिल न माना फिर मेरी बात
एक बार फिर भरोसा कर के
पहुंचा ह्रदय पे गहरा आघात
ये क्या हैं विडंबना, क्या हैं बात
क्यों बहक गए हैं आज फिर से जज़्बात
याद नहीं क्या उनको वो दिन
जब खाया था एक विश्वासघात
सुना हैं बाखूब किसी शायर से
दिल संभल जा ज़रा फिर बहक रहा है तू
मैं कहता लौट कर वापिस मत आना मेरे पास
मैं खुद नहीं सोच पाउँगा की मैं क्या बोलू
खुदा के बन्दे पर नीमत हैं उसकी
बच निकले थे जैसे तुम पिछली बार
आखिरी बार कह रहा हू संभल जा
टूट न जाए कही दिल के वो तार,
और बिखर जाये ज़िन्दगी की झंकार......!!!
~Kumar Utkarsh
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