याद उन लम्हों का पुनः आभास है,
जिसमे कोई अपना रहता हमारे पास है।
अपनों की याद मुझे तब-तब आ जाती है,
जब ज़िंदगी मुझे अपना दूजा पहलू दिखलाती है।
दूजा पहलू जीवन का वह समय है,
जिसमे बाहर से आक्रोश किन्तु अंदर से भय है।
भय की परिभाषा मेरे लिए कुछ और है,
ये तो वो आकांक्षाएँ है जिनपर
नहीं चलता ज़ोर है।
जब आती है याद मुझे अपने घर की,तो माँ का चेहरा
आँखों में उतार आता है,
कुछ सोचता हूँ तो पिता का खयाल दिल में घर कर जाता है।
जीवन एक पतंग है और दिल उसकी डोर है,
यादों के आकाश में इसपर कहाँ चलता ज़ोर है।
अपने आप से कहो की तुम्हारा दिल कहाँ कमजोर है,
फिर आकाश में हों कितने भी तूफान,पतंग पर कहाँ चलता
ज़ोर है।
आज भी याद आते मुझे अपने पुराने यार हैं,
मेरे दिल में उनके लिए आज भी उतना ही प्यार है।
बचपन की यादों को खुद से अलग नहीं कर पाता हूँ,
सोचता भविष्य की हूँ पर ना जाने क्यूँ हर बार गुजरे कल में पहुँच जाता हूँ।
अपनों के बिना ये जीवन लगता एक पहेली है,
आज उनकी यादें ही है जो मेरी सहेली है।
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