बहुत याद आता है वो गुज़रा ज़माना,
वो प्यारा सा बचपन वो मासूम फसाना,
सुबह रोज़ उठकर वो यूनिफॉर्म पहनना,
वो टाई में उलझना वो पापा का सिखाना,
बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार करना,
वो खिड़की वाली सीट की ख्वाहिश होना,
"स्कूल प्रेयर" और "थॉट ऑफ द डे" से दिन की शुरुआत,
वो "PHE" और "फ्री पीरियड" की राहें ताकना,
"लंच ब्रेक" से पहले "बोरिंग मेथ्स" पढ़ना,
और लंच ब्रेक में सबके टिफिन टटोलना,
फ्री पीरियड में होमवर्क पूरा करना,
फिर शाम को ज़्यादा खेलने की उम्मीद होना,
हर "आन्सर" के बाद वो लाल लाइन खींचना,
और हर एक "डाइयग्रॅम" को सुंदर सा सजाना,
घर जाके सीधा टीवी से चिपकना,
वो मम्मी का डांटना खाने के लिए,
शाम से पहले होमवर्क की जल्दी,
छत पर फिर फुल ऑन क्रिकेट खेलना,
वो दादा दादी से क़िस्से सुनना,
"पता है, आप सुना चुके हो" ये बार बार कहना,
वो मम्मी के हाथों का गर्मा गर्म खाना,
वो पापा के आने का “वेट” करना,
सब का छत पर जाकर फिर बातें करना,
तारों और सड़क की गाड़ियों की गिनती करना,
वो पापा का कहना जूते पॉलिश करके रखो,
वो मम्मी का समझाना स्कूल बैग भी जमा लो,
और कुछ ही देर में,
फिर जल्दी से सो जाना,
वो नया दिन फिर वैसे ही जीना,
पर हर दिन में खुशी, हर दिन में कुछ ख़ास होना,
हक़ीक़त था जो, अब हुआ है फसाना,
हक़ीक़त है जो, होगा वही फिर फसाना,
बहुत याद आता है वो गुज़रा ज़माना,
वो प्यारा सा बचपन वो मासूम फसाना |